
प्रदेश के चर्चित मंदसौर गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों आरोपी इरफान उर्फ भैयू और आसिफ की फांसी की सजा को निरस्त कर दिया। केस को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को एक लैंडमार्क आदेश माना जा रहा है। इस केस में आरोपियों की डीएनए रिपोर्ट मौजूद थी, लेकिन कोर्ट ने माना कि यही पर्याप्त नहीं है। DNA रिपोर्ट को तब तक मजबूत आधार नहीं माना जा सकता जब तक इसकी जांच करने वाले साइंटिफिक एक्सपर्ट्स के कोर्ट में बयान नहीं होते।
निष्पक्ष न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि साइंटिफिक एक्सपर्ट्स को गवाही के लिए कोर्ट में उपस्थित होना होगा। उन्हें डीएनए रिपोर्ट से संबंधित सभी दस्तावेज़ों की जांच प्रक्रिया स्पष्ट करनी होगी और इसे साबित करना होगा।
अभियोजन पक्ष को यह भी निर्देश दिया गया है कि डीएनए संबंधित सभी दस्तावेज़ बचाव पक्ष को उपलब्ध कराए जाएं ताकि बचाव पक्ष इन्हें चुनौती दे सके। इसके बाद साइंटिफिक एक्सपर्ट अपनी रिपोर्ट काे डिफेंड कर सकेंगे। इसके बाद साक्ष्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट निर्णय लेगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दोनों आरोपी अब सजायाफ्ता नहीं, बल्कि विचाराधीन कैदी हो गए हैं।
जिला कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सजा, हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा
2018 में मंदसौर में हुई इस वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले की मॉनिटरिंग की और फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रायल चलाने का आदेश दिया था। मंदसौर जिला कोर्ट ने मात्र 55 दिनों में दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस सजा को निरस्त कर मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आशय
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आशय यह है कि डीएनए एविडेंस को किस तरह से देखना और उसका मूल्यांकन करना चाहिए। ऐसे केसों में हर तरह का एविडेंस न्याय की कसौटी पर कसा जाए। इसमें अभियोजन को भी नहीं बचना चाहिए और बचाव पक्ष को भी मौका मिलना चाहिए। यही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सार है।
SC बोला- DNA रिपोर्ट ही पर्याप्त नहीं,साइंटिफिक एक्सपर्ट दें बयान:मंदसौर बालिका गैंप रेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा की निरस्त
प्रदेश के चर्चित मंदसौर गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों आरोपी इरफान उर्फ भैयू और आसिफ की फांसी की सजा को निरस्त कर दिया। केस को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को एक लैंडमार्क आदेश माना जा रहा है। इस केस में आरोपियों की डीएनए रिपोर्ट मौजूद थी, लेकिन कोर्ट ने माना कि यही पर्याप्त नहीं है। DNA रिपोर्ट को तब तक मजबूत आधार नहीं माना जा सकता जब तक इसकी जांच करने वाले साइंटिफिक एक्सपर्ट्स के कोर्ट में बयान नहीं होते।
निष्पक्ष न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि साइंटिफिक एक्सपर्ट्स को गवाही के लिए कोर्ट में उपस्थित होना होगा। उन्हें डीएनए रिपोर्ट से संबंधित सभी दस्तावेज़ों की जांच प्रक्रिया स्पष्ट करनी होगी और इसे साबित करना होगा।
अभियोजन पक्ष को यह भी निर्देश दिया गया है कि डीएनए संबंधित सभी दस्तावेज़ बचाव पक्ष को उपलब्ध कराए जाएं ताकि बचाव पक्ष इन्हें चुनौती दे सके। इसके बाद साइंटिफिक एक्सपर्ट अपनी रिपोर्ट काे डिफेंड कर सकेंगे। इसके बाद साक्ष्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट निर्णय लेगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दोनों आरोपी अब सजायाफ्ता नहीं, बल्कि विचाराधीन कैदी हो गए हैं।
जिला कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सजा, हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा
2018 में मंदसौर में हुई इस वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले की मॉनिटरिंग की और फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रायल चलाने का आदेश दिया था। मंदसौर जिला कोर्ट ने मात्र 55 दिनों में दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस सजा को निरस्त कर मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट भेज दिया।
आरोपी इरफान और आसिफ
आरोपी इरफान और आसिफ
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आशय
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आशय यह है कि डीएनए एविडेंस को किस तरह से देखना और उसका मूल्यांकन करना चाहिए। ऐसे केसों में हर तरह का एविडेंस न्याय की कसौटी पर कसा जाए। इसमें अभियोजन को भी नहीं बचना चाहिए और बचाव पक्ष को भी मौका मिलना चाहिए। यही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सार है।
आरोपियों की तरफ से सीनियर एडवोकेट अमित दुबे केस लड़ रहे है।
आरोपियों की तरफ से सीनियर एडवोकेट अमित दुबे केस लड़ रहे है।
एडवोकेट बोले- पुलिस की जांच निष्पक्ष नहीं थी
आरोपियों के एडवोकेट अमित दुबे (इंदौर) ने बताया कि दरअसल, इस केस का ट्रायल बहुत ही आपाधापी में चला। आरोपियों की ओर से कई महत्वपूर्ण बिंदु थे जिन्हें बचाव पक्ष ने उठाया था। यह घटना 2018 में हुई थी और उसके कुछ समय बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे।
संभव है कि उस दौरान पुलिस ने इस मामले में कहीं कोताही बरती हो। कोर्ट में प्रस्तुत साक्ष्य से साफ लग रहा था कि पुलिस की जांच उतनी निष्पक्ष और गहन नहीं थी। न्याय के लिए एक अच्छी और निष्पक्ष जांच होना जरूरी है। यदि समाज में न्याय व्यवस्था कायम रखना है, तो यह पुलिस की जिम्मेदारी है। हालांकि, इस मामले में पुलिस की जांच उचित नहीं थी।
पुलिस का डाक्यूमेंटेशन था कमजोर
पुलिस की कहानी यह थी कि एक आरोपी ने बालिका को अगवा किया और फिर अपने साथी को फोन किया। साथी को मौके पर बुलाकर दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। दूसरी ओर पुलिस द्वारा प्रस्तुत चालान में यह दर्ज था कि उस दिन दोनों आरोपियों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। ऐसे कई कमजोर बिंदु थे।
अब जाने DNA एविडेंस कितना था जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में खास बात यह है कि डीएनए एविडेंस को वैसा का वैसा नहीं माना जाए। यदि अभियोजन डीएनए रिपोर्ट को अपने केस का आधार बना रहा है, तो यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह साइंटिफिक एक्सपर्ट को गवाही के लिए बुलाए। एक्सपर्ट अपनी रिपोर्ट का प्रमाण प्रस्तुत करें और बचाव पक्ष के सवालों के उत्तर दें। इसके बाद कोर्ट तय करेगी कि रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय है।
इस केस में डीएनए रिपोर्ट है, जिसे नकारा नहीं जा रहा है। लेकिन जिस एक्सपर्ट ने जांच की है, वह भी इंसान है और गलतियां कर सकता है। इसलिए साइंटिफिक एक्सपर्ट का गवाही देना अनिवार्य है। आमतौर पर कोर्ट डीएनए रिपोर्ट को निर्णायक मान लेती है, लेकिन इस केस में इसे सिद्ध करना जरूरी होगा।
अब आगे क्या होगा
अब ट्रायल में साइंटिफिक एक्सपर्ट गवाही देंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, डीएनए रिपोर्ट से संबंधित सभी दस्तावेज बचाव पक्ष को उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके बाद बचाव पक्ष इसे चुनौती दे सकेगा। अभियोजन और बचाव पक्ष की पूरी सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट निर्णय लेगी।
बड़ी कमजोरी; फांसी की सजा के बाद डीएनए रिपोर्ट में किया सुधार
एडवोकेट दुबे के मुताबिक, जब इस केस में दोनों आरोपियों को फांसी की सजा दी गई थी, उसके बाद डीएनए रिपोर्ट में सुधार किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस बिंदु का उल्लेख किया है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की फांसी की सजा निरस्त कर दी।
चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने निचली कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले निरस्त कर दिए हैं, दोनों आरोपी अब सजायाफ्ता नहीं हैं बल्कि विचाराधीन कैदी के रूप में होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस केस का ट्रायल निष्पक्ष नहीं था और अभियोजन ने जल्दबाजी में काम किया था। अभियोजन फिर से ट्रायल चलाएगा और बचाव पक्ष को पूरा मौका मिलेगा।
पीड़िता का परिवार फिर दुखी हो गया
इस वीभत्स घटना ने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिए थे। बालिका का इंदौर के एमवाय अस्पताल में लंबा इलाज चला था। उसके प्राइवेट पार्ट की कई सर्जरी हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने परिवार को आर्थिक सहायता, मकान और रोजगार उपलब्ध कराया था।
घटना को सात साल बीतने के बावजूद पीड़िता और परिवार इससे उबर नहीं पाए हैं। जब पिता को मीडिया के माध्यम से फांसी की सजा निरस्त होने की जानकारी मिली, तो वे फिर से दुखी हो गए।
जानिए केस की टाइम लाइन
26 जून 2018 को 7 साल की स्कूली छात्रा को अगवा कर दोनों आरोपियों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। फिर उसे गंभीर हालत में झाड़ियों में फेंककर भाग गए थे। बालिका के पूरे शरीर पर दरिंदगी के निशान थे। उसकी पहली सर्जरी 7 घंटे तक चली थी। उसके गले, नाक पर भी काफी जख्म थे। उसे लम्बे समय तक ट्यूब फीडिंग दी गई। साथ ही घावों को ढंकने के लिए ल्युकोप्लास्टी की गई थी।
इस घटना को लेकर देशभर में प्रदर्शन हुए थे और मामला काफी गूंजा था।
बालिका को इंदौर के एमवाय अस्पताल में एडमिट किया गया था। तब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान उसकी हालत देखने इंदौर आए थे।
पुलिस ने 8 जुलाई 2018 को दोनों आरोपियों खिलाफ आरोप तय हुए।
20 जुलाई 2018 को ट्रायल शुरू हुआ।
30 जुलाई से 8 अगस्त 2018 तक अभियोजन ने आरोपियों के खिलाफ 37 गवाह पेश किए।
कोर्ट ने 21 अगस्त 2018 को दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई।
फिर हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने इसे कन्फर्म किया।
इसके खिलाफ आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की फांसी की सजा निरस्त की और फिर से केस मंदसौर ट्रायल कोर्ट को रैफर किया।
दोनों आरोपी अभी उज्जैन की भेरूगढ़ जेल में हैं।
350 का चालान,110 मेडिकल रिपोर्ट्स, 33 गवाह
इस केस में तब 350 पेज का चालान पेश किया गया था। केस में 33 लोगों के बयान हुए थे।
मेडिकल रिपोर्ट संबंधी 110 पेजों के दस्तावेज भी पेश किए गए थे।
एसआईटी ने घटना और आरोपियों के खिलाफ एकत्र साक्ष्य, जब्त हथियार भी पेश किए गए थे। पुलिस ने धारा 363, 366, 376 (2) एम, 376-डीबी, 307 आईपीसी, 5-एमआरजी/6 पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। इसके अलावा फोरेंसिक और डीएनए रिपोर्ट पेश की गई थी।
बच्ची ने भी अपने बयान में दोनों आरोपियों को पहचाना था।
साइंटिफिक एक्सपर्ट्स की लेंगे मदद
तत्कालीन एसपी और वर्तमान डीआईजी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि चार माह का समय है। अब केस में साइंटिफिक एक्सपर्ट्स की मदद लेंगे। घटना से जुड़े सीसीटीवी फुटेज भी हैं। आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाई जाएगी।