बीमा पालिसी को लेकर विवाद के संदर्भ में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने एक अहम फैसला सुनाया है। आयोग के पीठासीन अधिकारी सी विश्वनाथ की पीठ ने एक महिला डाॅक्टर द्वारा दायर बीमा कंपनी के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कोई भी पॉलिसी खरीदते समय यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी बनती है, कि वह अपने लिए सबसे उपयुक्त पॉलिसी का पता लगाए, उसे समझे और बीमा कंपनी से संपर्क करे।
एक पॉलिसी के लिए बीमा कंपनी से संपर्क करने, उसे प्राप्त करने और उसका क्लेम लेने के बाद बीमाधारक यह दावा नहीं कर सकता कि बीमा कंपनी ने उसे ठीक से सलाह नहीं दी और अन्य सस्ती पॉलिसी की जानकारी नहीं दी।
आयोग ने कहा कि उपभोक्ता की जरूरतों के हिसाब से उसके लिए कौन सी बीमा पॉलिसी बेहतर रहेगी, यह रिसर्च करने की जिम्मेदारी उपभोक्ता की होती है। इंश्योरेंस लेने व उस पॉलिसी के पूरा होने के बाद ग्राहक बीमा कंपनी पर यह आरोप नहीं लगा सकता कि कंपनी ने उस समय उसकी जरूरतों के हिसाब से मौजूद सस्ती पॉलिसी की जानकारी उसे नहीं दी। ऐसा दावा सही नहीं है, क्योंकि कंपनी का दायित्व इतना होता है कि वह अपने उपभोक्ता को उस पॉलिसी की पूरी जानकारी दे, जिसे उपभोक्ता लेना चाहता है।
मामला: रिस्क कवर, दूसरी पॉलिसी नहीं बताई
दिल्ली की डाॅक्टर शिप्रा त्रिपाठी ने आईसीआईसीआई लोंबार्ड इंश्योरेंस के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उनका कहना था कि उसने व उसके पति सुमित कुमार ओझा ने आईसीआईसीआई बैंक से कुल 1 करोड़ 22 लाख रुपए का लोन लिया था। इसमें 83 लाख रुपए होमलोन और 39 लाख रुपए प्रॉपटी पर लोन था।
इसके साथ ही उसके पति ने बीमा कंपनी से एक 21 लाख 18 हजार 915 रुपए की रिस्क कवर पॉलिसी भी ली थी। इसमें बीमारी, दुर्घटना या नौकरी जाने इत्यादि का रिस्क कवर था। इसके लिए उन्होंने बीमा कंपनी को वन टाइम प्रीमियम 1 लाख 29 हजार का भुगतान किया। 2 जनवरी 2012 को सुमित की मौत हो गई।
इसके बाद बीमा कंपनी ने मृतक की पत्नी को 21 लाख का डेथ क्लेम दे दिया। इसके बाद उन्हें जानकारी मिली कि जब उन्होंने पॉलिसी ली थी, तब 21 हजार रुपए प्रीमियम पर 1 करोड़ 22 लाख रुपए कवर वाली पाॅलिसी भी मौजूद थी। इस पर उन्होंने शिकायत दर्ज कराई थी।