
रिपब्लिक टीवी के पत्रकार प्रदीप भंडारी के पास एंटीसिपेटरी बेल थी उसे अरेस्ट्स नहीं किया जा सकता था, उसके बावजूद मुंबई पुलिस ने उसे इंटेरोगेट करने के लिए बुलाया,
कानून किसी व्यक्ति के फोन तभी जप्त किए जा सकते हैं जब वह अरेस्ट किया गया हो, किंतु उसके बावजूद उसके तीन फोन जब्त कर लिए, उस पर जबरदस्ती अपने फोन और लैपटॉप अनलॉक करने का दबाव बनाया गया, झुंड बनाकर मुंबई पुलिसकर्मियों द्वारा उसके साथ धक्का-मुक्की की गई,
10 घंटे तक प्रदीप भंडारी को बिना पानी और भोजन के बैठाए रखा और उस कमरे में बैठाए रखा जहां पंखा तक नहीं था,
बार-बार मांगने के बावजूद उसे पीने के लिए पानी और कुछ खाने के लिए तक नहीं दिया गया, प्रदीप भंडारी के रिक्वेस्ट करने के बावजूद उसे अपनी मां तक से बात नहीं करने दी गई,
यह सब कुछ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की आर्थिक राजधानी मुंबई में हो रहा है, जहां 10-10 घण्टों तक पत्रकारों को गैरक़ानूनी व् अवैध रूप से बंधक बनाकर भूखा प्यासा रखकर प्रताड़ित किया जा रहा है,
यदि महाराष्ट्र की राज्य सरकार, प्रशासन व् पुलिस द्वारा यह मीडिया पर आक्रमण नहीं तो फिर ये और क्या है ?
महाराष्ट्र में वही हालात हैं जो इमरजेंसी के समय कांग्रेस ने देश में पैदा किये थे, आज महाराष्ट्र में अघोषित इमरजेंसी के इस कालखंड में आपको फासिज्म और नाजीवाद एक साथ दिखाई देगा, जहां ना कानून न संविधान ना लोकतंत्र ना मानवअधिकार ना ही जुडिशरी की कोई औकात रह गई है,
वास्तव में इस समय महाराष्ट्र में एक पगले सुल्तान का तुगलकी राज चल रहा है जो सभी मानवअधिकार संविधान और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाता हुआ एक फासीवादी तालिबानी रवैया अपनाए हुए हैं, जानबूझकर एक मीडिया हाउस को टारगेट किया जा रहा है,
और भारत का पूरा प्रबुद्ध लिबरल, बुद्धिजीवी मानवतावादी, मीडिया इस पर मुंह फेरे बैठा हैं, और मन ही मन प्रफुल्लित हो रहा है,
मुझे अच्छी प्रकार से याद है भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार की पेशी के दौरान एक मीडिया कर्मी को किसी वकील की कोहनी लग गई थी, जिसके बाद मीडिया पर हमले का नैरेटिव गढ़ा गया प्रत्येक चैनल ने दिन-रात कवरेज कर उस विषय पर एक बवाल खड़ा कर दिया था, भारत के प्रत्येक बड़े पत्रकार और एडिटर ने उसके विरोध में दिल्ली की सड़कों पर मार्च किया था,
जबकि यहां खुलेआम एक पत्रकार के मानव अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है एक मीडिया हाउस उसे प्रताड़ित किया जा रहा है, परन्तु फिर भी किसी को इसमें कुछ गलत नहीं दिखाई दे रहा, मैं जानता हूं कि हर प्रोफेशन में कंपटीशन होता है आप किसी व्यक्ति की कार्यशैली से सहमत असहमत हो सकते हैं, परंतु इस प्रकार के अत्याचार पर भी यदि आप मीडिया का हिस्सा होकर इस विषय से मुंह फेरे बैठे हैं तो वास्तव में आप स्वयं को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और मीडिया का हिस्सा कहलाने के योग्य ही नहीं है।