
श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का, राष्ट्रीय भावना का और ये मंदिर करोड़ों-करोड़ लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। ये मंदिर आने वाली पीढ़ियों को आस्था, श्रद्धा, और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। इसके बनने के बाद अयोध्या की सिर्फ भव्यता ही नहीं बढ़ेगी, इस क्षेत्र का पूरा अर्थतंत्र भी बदल जाएगा।
यहां हर क्षेत्र में नए अवसर बनेंगे, हर क्षेत्र में अवसर बढ़ेंगे। सोचिए, पूरी दुनिया से लोग यहां आएंगे, पूरी दुनिया प्रभु राम और माता जानकी का दर्शन करने आएगी। कितना कुछ बदल जाएगा यहां। इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा, बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है।
जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, जिस तरह छोटे-छोटे ग्वालों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने में बड़ी भूमिका निभाई, जिस तरह मावले, छत्रपति वीर शिवाजी की स्वराज स्थापना के निमित्त बने, जिस तरह गरीब-पिछड़े, विदेशी आक्रांताओं के साथ लड़ाई में महाराजा सुहेलदेव के संबल बने, जिस तरह दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों, समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गांधी जी को सहयोग दिया, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का ये पुण्य-कार्य प्रारंभ हुआ है।
श्रीरामचंद्र को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश्य और यश में इंद्र के समान माना गया है। श्रीराम ने सामाजिक समरसता को अपने शासन की आधारशिला बनाया था। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से ज्ञान, केवट से प्रेम, शबरी से मातृत्व, हनुमानजी एवं वनवासी बंधुओं से सहयोग और प्रजा से विश्वास प्राप्त किया।
यहां तक कि एक गिलहरी की महत्ता को भी उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। उनका अद्भुत व्यक्तित्व, वीरता, उदारता, सत्यनिष्ठा, निर्भीकता, धैर्य, दृढ़ता, उनकी दार्शनिक दृष्टि युगों-युगों तक प्रेरित करते रहेंगे। राम प्रजा से एक समान प्रेम करते हैं लेकिन गरीबों और दीन-दुखियों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। इसलिए तो माता सीता, राम जी के लिए कहती हैं- ‘दीन दयाल बिरिदु संभारी’। यानी जो दीन है, जो दुखी हैं, उनकी बिगड़ी बनाने वाले श्रीराम हैं।
भगवान बुद्ध भी राम से जुड़े हैं तो सदियों से ये अयोध्या नगरी जैन धर्म की आस्था का केंद्र भी रही है। राम की यही सर्वव्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित्र है!
श्रीलंका में रामायण की कथा जानकी हरण के नाम सुनाई जाती है, और नेपाल का तो राम से आत्मीय संबंध, माता जानकी से जुड़ा है। ऐसे ही दुनिया के और न जाने कितने देश हैं, कितने छोर हैं, जहां की आस्था में या अतीत में, राम किसी न किसी रूप में रचे बसे हैं! आज भी भारत के बाहर दर्जनों ऐसे देश हैं जहां, वहां की भाषा में रामकथा, आज भी प्रचलित है। मुझे विश्वास है कि आज इन देशों में भी करोड़ों लोगों को राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने से बहुत सुखद अनुभूति हो रही होगी। आखिर राम सबके हैं, सब में हैं।
श्रीराम के नाम की तरह ही अयोध्या में बनने वाला ये भव्य राममंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का द्योतक होगा। यहां निर्मित होने वाला राममंदिर अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा। इसलिए हमें ये भी सुनिश्चित करना है कि भगवान श्रीराम का संदेश, राममंदिर का संदेश, हमारी हजारों सालों की परंपरा का संदेश, कैसे पूरे विश्व तक निरंतर पहुंचे। कैसे हमारे ज्ञान, हमारी जीवन-दृष्टि से विश्व परिचित हो, ये हमारी, हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियों की ज़िम्मेदारी है। इसी को समझते हुए, आज देश में भगवान राम के चरण जहां जहां पड़े, वहां राम सर्किट का निर्माण किया जा रहा है!
हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है- पूरी पृथ्वी पर श्रीराम के जैसा नीतिवान शासक कभी हुआ ही नहीं! श्रीराम की शिक्षा है- कोई भी दुखी न हो, गरीब न हो। श्रीराम का सामाजिक संदेश है- नर-नारी सभी समान रूप से सुखी हों। श्रीराम का निर्देश है- किसान, पशुपालक सभी हमेशा खुश रहें। श्रीराम का आदेश है- बुजुर्गों की,बच्चों की, चिकित्सकों की सदैव रक्षा होनी चाहिए। श्रीराम का आह्वान है- जो शरण में आए,उसकी रक्षा करना सभी का कर्तव्य है। श्रीराम का सूत्र है- अपनी मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है।
राम हमें समय के साथ बढ़ना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं। राम परिवर्तन के पक्षधर हैं, राम आधुनिकता के पक्षधर हैं। उनकी इन्हीं प्रेरणाओं के साथ, श्रीराम के आदर्शों के साथ भारत आज आगे बढ़ रहा है!
प्रभु श्रीराम ने हमें कर्तव्यपालन की सीख दी है, अपने कर्तव्यों को कैसे निभाएं इसकी सीख दी है! उन्होंने हमें विरोध से निकलकर, बोध और शोध का मार्ग दिखाया है! हमें आपसी प्रेम और भाईचारे के जोड़ से राममंदिर की इन शिलाओं को जोड़ना है। हमें ध्यान रखना है, जब-जब मानवता ने राम को माना है विकास हुआ है, जब-जब हम भटके हैं विनाश के रास्ते खुले हैं।
हमें सभी की भावनाओं का ध्यान रखना है। हमें सबके साथ से, सबके विश्वास से, सबका विकास करना है। अपने परिश्रम, अपनी संकल्पशक्ति से एक आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है। तमिल रामायण में श्रीराम कहते हैं- अब देरी नहीं करनी है, अब हमें आगे बढ़ना है!
आज भारत के लिए भी, हम सबके लिए भी, भगवान राम का यही संदेश है! मुझे विश्वास है, हम सब आगे बढ़ेंगे, देश आगे बढ़ेगा! भगवान राम का ये मंदिर युगों-युगों तक मानवता को प्रेरणा देता रहेगा, मार्गदर्शन करता रहेगा! वैसे कोरोना की वजह से जिस तरह के हालात हैं, प्रभु राम का मर्यादा का मार्ग आज और अधिक आवश्यक है।
वर्तमान की मर्यादा है, दो गज की दूरी- मास्क है जरूरी। मर्यादाओं का पालन करते हुए सभी देशवासियों को प्रभु राम स्वस्थ रखें, सुखी रखें, यही प्रार्थना है। सभी देशवासियों पर माता सीता और श्रीराम का आशीर्वाद बना रहे। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, सभी देशवासियों को एक बार फिर बधाई! बोलो सियापति रामचंद्र की…जय !!!