आपदा में अवसर ढूंढने और अवसर में आनंद घोलने का उदाहरण हैं कृष्ण। कृष्ण अनूठे और अद्भुत हैं। अद्भुत इसलिए कि जो किया, जमकर किया। बाधा हो या रुकावट, खुशी भंग नहीं होने दी। अनूठे इसलिए कि उन्होंने मनुष्य जीवन को व्यवस्थित जिया। कृष्ण जन्म के समय कंस ने जो हालात बनाए थे, वैसे ही आज कोरोना ने खड़े किए हैं। आज के दौर में हम मनुष्यों के व्यावसायिक, सामाजिक-राष्ट्रीय, पारिवारिक और निजी, चारों जीवनों के लिए कृष्णलीला में गहरे संदेश छिपे हैं, जिन्हें हमें आज पहचानना है।
व्यक्तिगत
कृष्ण का चिंतन: निजी जीवन यानी व्यक्ति का अपनी आत्मा के साथ जीवन जीना। हम सभी लोग शरीर, मन और आत्मा, इन तीनों से बने हैं। ऊपर की तीन जीवनशैलियां शरीर और मन से संचालित हैं, लेकिन निजी जीवन आत्मा पर आधारित होना चाहिए। कृष्ण की तरह हम भीतर से निजी रूप से जितने पवित्र होंगे, बाहर से उतने ही शांत होंगे।
महामारी : कोरोना वायरस के इस काल में निजी जीवन की पवित्रता का सबसे बड़ा परिणाम शरीर पर पड़ेगा और वह होगा इम्यूनिटी बढ़ना। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना ही इस महामारी का उपचार है।
परिवार
कृष्ण का चिंतन : कृष्ण ने परिवार का आधार प्रेम को माना। उनके जितना विशाल परिवार संभवत: विश्व में किसी के पास नहीं था। फिर भी उनके परिवार का प्रत्येक सदस्य एक बात स्वीकार करता था कि उनके पास जाने पर प्रेम की भरपूर अनुभूति होती है।
महामारी : इन दिनों कहा जा रहा है कि कोरोना से बचे रहने के लिए दूरी बनाए रखें। कृष्ण से सीखिए, वे हस्तिनापुर में रहते थे तो इंद्रप्रस्थ वाले उनको वहां महसूस करते। इंद्रप्रस्थ में रहते, तो द्वारका वालों को लगता हमारे साथ हैं। हम उपस्थित न होकर भी उपस्थित हों और पास रहकर भी दूर रहंे, अब यही जीवनशैली काम आएगी।
समाज
कृष्ण का चिंतन : श्रीकृष्ण कहते थे सामाजिक व राष्ट्रीय जीवन में पारदर्शिता रखना चाहिए। महाभारत की सामाजिक और राष्ट्रीय व्यवस्था में कृष्ण के लिए गए निर्णय आज भी आचार संहिता माने जाते हैं।
महामारी: सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन जीते हुए श्रीकृष्ण अनुशासित रहे। अनुशासनहीनता को पाप घोषित किया। उनके अनुशासनप्रिय होने का उदाहरण है कि वे अपने रथ के घोड़े स्वयं नहलाते थेे। राजसूय यज्ञ में जूठे दोने-पत्तल उन्होंने खुद उठाए। उनका संदेश था-कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता, बड़ी-छोटी नीयत होती है।
व्यापार
कृष्ण का चिंतन : श्रीकृष्ण परिश्रम को योग्यता मानते थे और परिणाम को क्षमता। उन्होंने गीता में निष्कामता शब्द देकर समझाया कि व्यावसायिक जीवन में कर्म फल के प्रति चिंतित रहो, जागरूक रहो, पर आसक्त मत रहो। आसक्ति टिक गई तो सफल हाेने पर अहंकार आ जाएगा। असफल रहे तो अवसाद घेर लेगा।
महामारी : कोरोना ने जीवन बदल दिया है। कृष्ण ने सिखाया है संकट में भी श्रेष्ठ किया जा सकता है। पांडवों को दुर्योधन ने खांडव वन दिया था। उजाड़ क्षेत्र। कृष्ण ने आपदा को अवसर बनाया। वहीं इंद्रप्रस्थ बनवा दिया। इंद्रप्रस्थ व्यावसायिक दृष्टिकोण का आदर्श उदाहरण है।
इस बार जन्माष्टमी हमें मनाना ही नहीं, जीना भी है। ऐसा करते हैं तो यह कठिन दौर बहुत सरल लगने लगेगा। श्रीकृष्ण का यह नारा याद रखें कि जो भी करो, अपने भीतर की प्रसन्नता को कभी भंग मत होने दो..।