शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दोनों के लुप्त होने के बीच कोई संबंध है. इस शोध में गुजरात से लेकर राजस्थान तक सरस्वती पर टुकड़ों में हुई खोज को एक साथ साथ जोड़कर उसे नए सिरे से देखने और समझने की कोशिश की गई है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि सरस्वती को नकारा नहीं जा सकता.
यह रिसर्च पेपर बीते मार्च माह में होने वाली इंटरनेशनल जियोलॉजी कांग्रेस (IGC-2020) के 47 पेपरों में सेलेक्ट हुआ था. लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के चक्कर में इसे रद्द कर दिया गया था. यह रिसर्च जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के रिटायर्ड डायरेक्टर डॉ. हरी सिंह सैनी, दिल्ली यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी के प्रो. एनसी पंत और रिसर्चर अपूर्व आलोक ने की है.

हरियाणा में मौजूद सरस्वती नदी का चैनल (Map-HS Saini)
सभ्यता और नदी लुप्त होने का संबंध
सैनी ने न्यूज18 हिंदी से बातचीत में कहा कि लगभग 2000 किलोमीटर लंबी इस विस्मयकारी नदी का उद्गम-स्रोत हिमालय है. लेकिन इसके निशान गुजरात, हरियाणा और पंजाब से लेकर राजस्थान तक मिलते हैं. इस क्षेत्र में धरती टेक्टॉनिकली काफी एक्टिव है. सैनी के मुताबिक हडप्पा सभ्यता (Harappa-Indus Valley Civilisation) के पतन और सरस्वती नदी के लुप्त होने के बीच संबंध है. दोनों का काल लगभग एक ही है. करीब 4200 साल पहले. तब मानसून काफी कम हो गया था यानी बड़ा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हुआ था.
हड़प्पा सभ्यता सरस्वती के ही मैदान में बसी हुई थी लेकिन वो भी लुप्त हो गई. क्या सभ्यता इसलिए लुप्त हो गई कि सरस्वती नदी सूख गई या फिर उसके अपने अलग कारण थे. सरस्वती नदी के सूखने की वजह हमारी वर्तमान नदियों के प्रति हमारी समझ को बढ़ा सकती है. सरस्वती नदी थी तो क्यों लुप्त हुई. इतनी बड़ी नदी लुप्त हो सकती है तो हमें यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि वर्तमान नदियां भी कभी लुप्त हो सकती हैं.’
सैनी का कहना है कि सरस्वती नदी पर करीब डेढ़ सौ साल से रिसर्च चल रही है. पिछले दो दशकों में इससे संबंधित डेटा आना शुरू हुआ है. इस पर अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अलग-अलग हिस्से में काम किया है. इन सभी वैज्ञानिक खोजों को नई रिसर्च के साथ जोड़कर नए सिरे से देखने की कोशिश की गई है. हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि एक नदी तो थी. इसके कई राज्यों में निशान मिलते हैं. लेकिन यह निशान लगातार नहीं हैं.
नदी लुप्त होने के ये हो सकते हैं दो बड़े कारण
इसमें सरस्वती नदी के लुप्त होने के और कारणों की संभावनाओं को तलाशने पर बल दिया है. इसमें मुख्य तौर पर टेक्टॉनिक कारण की तरफ संकेत किया गया है. क्योंकि हिमालय टेक्टॉनिकली काफी सक्रिय है. शायद इसी कारण से नदी और सभ्यता दोनों का अंत हो गया होगा. हरियाणा और दिल्ली के बेस में भी भूकंप के रूप में टेक्टॉनिक एक्टिविटी उभरकर बाहर आती रहती है. इसी क्षेत्र में इस नदी के अवशेष भी मिलते हैं. इसलिए सरस्वती नदी और हड़प्पा सभ्यता दोनों के लुप्त होने के कारण मानसून के अलावा टेक्टॉनिक एक्टिविटी (Tectonic activity) को भी माना जा सकता है.
नॉर्थ-वेस्ट हरियाणा में फतेहाबाद के आसपास सरस्वती नदी का बहुत बड़ा चैनल मौजूद है. इसके नीचे के सैंपल की ओएसएल (OSL dating) और कार्बन डेटिंग के जरिए काल निर्धारण कर पता किया गया कि आखिर कितने सौ साल पहले कैसा बदलाव आया. पता चला है कि यह करीब 42 सौ साल पहले लुप्त हुई.
भविष्य में कैसे कारगर साबित हो सकती है रिसर्च
सरस्वती नदी पर शोध के सहारे वर्तमान नदियों को जलवायु परिवर्तन के कहर से बचाया जा सकता है. छह हजार साल पहले सरस्वती नदी का बहाव अच्छी स्थिति में था लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण वो भी आज की कई नदियों की तरह बारिश पर निर्भर हो गई और फिर धीरे-धीरे लुप्त हो गई. शोध से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल करके गंगा-यमुना जैसी कई नदियों और उपजाऊ मैदानों को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाया जा सकता है. इससे पता चलेगा कि तेजी से बदलती जलवायु के कारण सिकुड़ती नदियों के साथ हम कैसा व्यवहार करें. ताकि ये सदानीरा नदियां सरस्वती की तरह इतिहास बनने से बच जाएं.
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