भोपाल. मध्य प्रदेश में कमलनाथ (Kamal Nath) के नेतृत्व वाली कांग्रेस नीत सरकार के गिरने एवं उसके बाद शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भाजपा नीत सरकार आने से तिलमिलाए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) पर हमला बोला है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सिंधिया ने मध्य प्रदेश के जनादेश को नीलाम कर दिया. दिग्विजय ने यह आरोप चौहान के मुख्यमंत्री बनने के एक दिन बाद मध्य प्रदेश की जनता के नाम खुले पत्र में लगाया है. उन्होंने कहा कि सिंधिया मध्य प्रदेश के जनादेश को नीलाम कर गए.दिग्विजय ने इस पत्र में लिखा, ‘पिछले दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ी और कांग्रेस की सरकार गिर गई. यह बेहद दुखद घटनाक्रम है जिसने न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं बल्कि उन सभी नागरिकों की आशाओं और संघर्ष पर पानी फेर दिया, जो कांग्रेस की विचारधारा में यक़ीन रखते हैं.’ उन्होंने कहा कि मुझे बेहद दुख है कि सिंधिया उस वक़्त भाजपा में गए, जब भाजपा खुलकर आरएसएस के असली एजेंडा को लागू करने के लिए देश को पूरी तरह बांट रही है. कुछ लोग यह कह रहे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में उचित पद और सम्मान मिलने की संभावना समाप्त हो गई थी, इसलिए वह भाजपा में चले गए. लेकिन ये गलत है. यदि वह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनना चाहते थे, तो ये पद उन्हें 2013 में ही ऑफ़र हुआ था और तब उन्होंने केंद्र में मंत्री बने रहना पसंद किया था.उप-मुख्यमंत्री पद संभालने का न्यौता भी दिया थादिग्विजय ने आगे कहा कि यही नहीं, 2018 में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश का उप-मुख्यमंत्री पद संभालने का न्यौता भी दिया था. लेकिन उन्होंने स्वयं इसे अस्वीकार कर अपने समर्थक तुलसी सिलावट को उप-मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर दी थी. कमलनाथ तुलसी सिलावट को उप-मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं हुए और हाल के घटनाक्रम ने ये साबित भी कर दिया है कि वे सही थे. तुलसी सिलावट न सिर्फ़ भाजपा में गए, बल्कि ऐसे वक़्त में गए, जब राज्य में कोरोना वायरस की महामारी से निपटने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री के नाते उन्हीं की थी. सिंधिया ऐसे व्यक्ति को कांग्रेस सरकार का उप-मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, जो न सिर्फ़ कांग्रेस विचारधारा के प्रति बेईमान निकला, बल्कि पूर्ण रूप से गैर ज़िम्मेदार भी साबित हुआ है.उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राजनीति केवल सत्ता की राजनीति नहीं है. आज कांग्रेस की विचारधारा के सामने संघ की विचारधारा है. ये दोनों विचारधाराएं भारत के अलग- अलग स्वरूप की कल्पना करती है. आज कांग्रेस की सरकार जाने का दुख उन सभी को है, जो कांग्रेस की विचारधारा में यक़ीन रखते हैं. इसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नहीं, वो सभी भारत के आम नागरिक शामिल हैं, जो आरएसएस की विचारधारा के ख़िलाफ़ हर रोज़ बिना किसी लोभ के संघर्ष कर रहे हैं. ये सब कांग्रेस के साथ इसलिए हैं क्योंकि देश आज एक वैचारिक दोराहे पर खड़ा है. ऐसे मोड़ पर सिंधिया का भाजपा में जाना यही साबित करता है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों के संघर्ष और वैचारिक प्रतिबद्धता को वह केवल अपनी निजी सत्ता के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे. जब तक कांग्रेस में सत्ता की गारंटी थी, कांग्रेस में रहे और जब ये गारंटी कमजोर हुईं तो भाजपा में चले गए.सहानुभूति की आड़ लेने की कोशिश हो रही हैदिग्विजय ने कहा कि सिंधिया के वैचारिक विश्वासघात को सम्माननीय बनाने के लिये सहानुभूति की आड़ लेने की कोशिश हो रही है. कहा जा रहा है कि कमलनाथ और दिग्विजय ने पार्टी में उनकी जगह छीन ली थी. इसीलिए पार्टी में वह घुटन महसूस कर रहे थे. ऐसा कहने वाले या तो पार्टी के इतिहास को नहीं जानते या फिर जानबूझकर पार्टी पर निराधार हमले कर रहे हैं. वे भूलते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी हमेशा से मज़बूत नेताओं की सामूहिक पार्टी रही है. मेरे 10 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ला, शंकरदयाल शर्मा, माधवराव सिंधिया, मोतीलाल वोरा, कमलनाथ, श्रीनिवास तिवारी जैसे सम्मानित और बड़े जनाधार वाले नेता कांग्रेस पार्टी में थे. इन सभी को मेरी ओर से सदैव मान सम्मान मिला था. सभी मिलकर कांग्रेस पार्टी में अपनी-अपनी जगह को सहेजते भी थे और पार्टी को मज़बूत भी करते थे. यही कारण है कि 1993 के बाद 1998 में कांग्रेस को दोबारा जनादेश मिला था.उन्होंने कहा कि सिंधिया को प्रियंका गांधी के साथ उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था. पार्टी से उन्हें बहुत कुछ मिला था.आज पार्टी को उनकी ज़रूरत थी और उनका कर्तव्य पार्टी को मज़बूत बनाना था. पार्टी को केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम समझना कितना उचित है? 2003 में जब मेरे नेतृत्व में पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव हार गई थी, तब मैंने प्रण लिया था कि दस वर्ष तक मैं कोई सरकारी पद ग्रहण नहीं करूँगा और पार्टी को मज़बूत बनाने के लिए कार्य करूँगा. इन 10 वर्षों में से 9 वर्ष केन्द्र में यूपीए की सत्ता थी. सिंधिया की तरह सत्ता का लोभ ही मेरी राजनीति का ध्येय होता, तो कांग्रेस के शासन वाले इन वर्षों में मैं सत्ता से दूर नहीं रहता.
सिंधिया को राज्य सभा का टिकट नहीं देना चाहती थीदिग्विजय ने कहा कि ये कहना ग़लत है कि पार्टी सिंधिया को राज्य सभा का टिकट नहीं देना चाहती थी, इसीलिये वह भाजपा में चले गए. जहाँ तक मेरी जानकारी है, किसी ने इसका विरोध नहीं किया था. मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास दो राज्य सभा सीट जीतने के लिए ज़रूरी विधायक संख्या थी. इसलिए मुद्दा सिर्फ़ सीट का नहीं था। मुद्दा केंद्र सरकार में मंत्री पद का था, जो सिर्फ़ नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही दे सकते थे.मोदी- शाह तो हाज़िर थे हीउन्होंने कहा कि मोदी -शाह की इस जोड़ी ने पिछले छह साल में इसी धनबल और प्रलोभन के आधार पर उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में सत्ता पर क़ब्ज़ा किया है. मध्य प्रदेश के जनादेश की नीलामी सिंधिया स्वयं करने निकल पड़े, तो मोदी- शाह तो हाज़िर थे ही. लेकिन अपने घर की नीलामी को सम्मान का सौदा नहीं कहा जाता.दिग्विजय ने कहा कि सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे अपने त्याग पत्र में कहा है कि वह जनता की सेवा करने के लिए कांग्रेस छोड़ रहे हैं. लेकिन जनता की सेवा करने के लिए कांग्रेस को छोड़ने की ज़रूरत आख़िर क्यों पड़ी? वह कांग्रेस के महामंत्री थे. राज्यों में पार्टी को जन सेवा के लायक बनाने के लिए यह सर्वोच्च पद है. इस पद पर रह कर कांग्रेस को मज़बूत करने में उनकी रुचि क्यों नहीं रही?ये भी पढ़ें- COVID-19: मुंबई से मधुबनी के लिए बाइक पर निकला छात्र, यहां पुलिस ने लगाई ब्रेककोरोना महामारी झेलने लायक नहीं है हेल्थ सिस्टम, घर रहकर करें लॉकडाउन का समर्थन