(रशीद किदवई)नई दिल्ली. बीजेपी में शामिल होने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना गुनगाण करवाना जरूरी नहीं समझा और वो अपने चिर प्रतिद्वंद्वी कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने में कामयाब रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार हार का मुंह देखने वाले सिंधिया दिसंबर 2018 में तब शिथिल (शांत) पड़ गए थे जब कांग्रेस नेतृत्व (सोनिया गांधी और राहुल गांधी) ने दिग्गज कमलनाथ के हाथों में राज्य नेतृत्व की कमान सौंप दी. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस पर गहरी निराशा जताई. लेकिन सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों के मुताबिक नवनिर्वाचित कांग्रेस विधायकों की हुई बैठक में कमलनाथ को हरी झंडी दे दी गई.संसद के सेंट्रल हॉल में बैठे पूर्ववर्ती ग्वालियर साम्राज्य में से एक नरसिंहगढ़ के महाराजा भानु प्रताप (जनवरी 2019 में भानु प्रताप का निधन हो गया) ने स्पष्ट रूप से बताया था कि ज्योतिरादित्य मुख्यमंत्री पद की लड़ाई क्यों हार गए थे, ‘इसके दो कारण हैं.’पूर्व सांसद भानु प्रताप ने वरिष्ठ पत्रकार निर्मल पाठक और कुछ अन्य लोगों से कहा था, ‘हर कोई मध्य प्रदेश में महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को जानता है, लेकिन वो खुद बहुत कम लोगों को जानते हैं. दूसरा, महाराज के कुर्ते (कमीज) में जेब नहीं है.’ कुर्ता और जेब का इशारा इस संदर्भ में है कि सिंधिया पैसे खर्च करने और संरक्षण देने में पीछे हैं.मार्च-अप्रैल 2018 के दौरान यह किसी भी आम दिन की तरह था, दिग्विजय सिंह को बाहर रखने के लिए सिंधिया और कमलनाथ ने हाथ मिलाया था. यह वो समय था जब मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव ज्यादा दूर नहीं थे. वो अक्सर भावुकता के साथ बोलते थे, ‘हम एक हैं.’ कमलनाथ मुझसे अक्सर कहते थे, आप ज्योतिरादित्य से भी ये बात पूछ सकते हैं. दिसंबर 2018 में कमलनाथ के मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा के आरोप लगे (न्यूज़ 18 ग्राफिक्स)कमलनाथ और सिंधिया ने दिग्विजय को बाहर रखने के लिए ‘हाथ मिलाया’
दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य थोड़े और संरक्षित होकर कहते थे, पार्टी आलाकमान जिसको भी जिम्मेदारी सौंपेगी उसे वो समर्थन देने पर विचार करेंगे. उस समय, ये क्षेत्रीय क्षत्रप दिग्विजय सिंह को दूर रखने के लिए भरसक प्रयास कर रहे थे, जो इस दौड़ से बाहर थे. और 1100 मील लंबी नर्मदा नदी पदयात्रा निकालने में व्यस्त थे.दिसंबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विजय मिली. तब कांग्रेस में और बाहर सभी को उम्मीद थी कि पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी युवाओं को तरजीह देंगे. लेकिन उनके लिए तीनों निर्णय गलत साबित हुए. कांग्रेस की ओर से कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश भागल ने क्रमशः मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन ये सिर्फ धैर्य और कड़े मेहनत के माध्यम से नहीं, बल्कि अंतिम क्षणों में पर्दे के पीछे हुए गणित से मुमकिन हुआ.महाराजा भानु प्रताप की कठोर टिप्पणियों के बावजूद, ज्योतिरादित्य को राहुल गांधी पर बहुत भरोसा था. वो दोनों चार साल की उम्र से एक-दूसरे को जानते थे, पहले दून स्कूल और फिर दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की थी. दोनों ने अपने संबंधित पाठ्यक्रम (ज्योतिरादित्य ने बीए पास कोर्स और राहुल गांधी ने हिस्ट्री ऑनर्स कोर्स) में दाखिला लिया था.AICC के अध्यक्ष राहुल गांधी तटस्थ बने रहेहालांकि, तब ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के 87वें अध्यक्ष राहुल गांधी तटस्थ बने रहे. शायद कांग्रेस अध्यक्ष के वजनदार पद ने उन्होंने अपने दोस्त के पक्ष में जाने से रोक दिया. मार्च 2020 की शुरुआत में जो कुछ हुआ ये उस कड़ी में एक महत्वपूर्ण घटना थी. जैसा कि किसी ने कभी कहा था, ‘दोस्ती ईश्वर का दिया हुआ सबसे सुंदर उपहार है. यदि आपका सबके अच्छा दोस्त है सच्चा वफादार है, तो आप दुनिया के सबसे खुशकिस्मत व्यक्ति हैं, लेकिन अगर वो वफादार दोस्त आपको धोखा देता है, तो आप निराश और आहत होते हैं.'(इस लेख को अंग्रेजी में पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)