सिंधिया समर्थक कई विधायक बेंगलुरू में मौजूद हैं.
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की 222 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गयी है. इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं.
नई दिल्ली/बेंगलुरु/ भोपाल. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को यह स्वीकार किया कि कमलनाथ सरकार (Kamal Nath) की किस्मत 16 बागी विधायकों के हाथों में है. अदालत ने कहा कि वह विधानसभा द्वारा यह तय करने के बीच में दखल नहीं देगी कि किसके पास विश्वासमत है. अदालत ने कहा कि उसे यह सुनिश्चित करना है कि बागी विधायक स्वतंत्र रूप से अपने अधिकार का इस्तेमाल करें. इस मामले में अदालत गुरुवार यानी 10.30 बजे सुनवाई शुरू करेगी.इससे पहले बुधवार को अदालत ने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) कांग्रेस (Congress) के बागी विधायकों से जजों के चैंबर में मुलाकात करने की पेशकश को ठुकराते हुये कहा कि विधानसभा जाना या नहीं जाना उन पर (विधायकों) निर्भर है, लेकिन उन्हें बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता. कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के इस्तीफे की वजह से मध्य प्रदेश में उत्पन्न राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है, जिससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुएजस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह टिप्पणी की.बेंच ने इन विधायकों का चैंबर में मुलाकात करने की पेशकश यह कहते हुये ठुकरा दी कि ऐसा करना उचित नहीं होगा. यही नहीं, बेंच ने रजिस्ट्रार जनरल को भी इन बागी विधायकों से मुलाकात के लिए भेजने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस विधायक दल की याचिकाओं पर सुनवाई गुरुवार सुबह साढ़े दस बजे तक के लिये स्थगित कर दी.शिवराज सिंह चौहान की ओर से याचिकाबेंच ने कहा, ‘संवैधानिक अदालत होने के नाते, हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना है और इस समय की स्थिति के अनुसार वह यह जानती है कि मध्य प्रदेश में ये 16 बागी विधायक पलड़ा किसी भी तरफ झुका सकते हैं.’ अदालत ने इस मामले के अधिवक्ताओं से अनुरोध किया कि वे विधायकों के विधानसभा तक निर्बाध रूप से पहुंचने और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का तरीका तैयार करने में मदद करें.पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सभी बागी विधायकों को न्यायाधीशों के चैंबर में पेश करने का प्रस्ताव रखा जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया. विपक्षी भाजपा ने 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार का तत्काल शक्ति परीक्षण कराने की मांग की है.मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष एन पी प्रजापति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दलबदल कानून को नाकाम करने और एक निर्वाचित सरकार को गिराने के लिए सत्तारूढ़ विधायकों के इस्तीफे सुनिश्चित कराकर एक नये तरह के ‘जुगाड़’ का आविष्कार किया गया है. अध्यक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने पीठ को बताया कि राजीव गांधी सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए दल-बदल विरोधी कानून बनाया था कि जनप्रतिनिधि अपना पक्ष बदलकर लोकप्रिय जनादेश की उपेक्षा न करें. 26 मार्च तक के लिये स्थगित विधानसभा
बता दें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिये स्थगित किये जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. भाजपा ने इस याचिका में अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा के प्रधान सचिव पर संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन करने और जानबूझ कर राज्यपाल के निर्देशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया था.
राज्यपाल लालजी टंडन ने शनिवार की रात मुख्यमंत्री को संदेश भेजा था कि विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन में विश्वास मत हासिल किया जाये क्योंकि उनकी सरकार अब अल्पमत में है. अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किये जाने के बाद 222 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गयी है. इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं, जिनके इस्तीफे अभी स्वीकार नहीं किये गये हैं. राज्य विधानसभा में इस समय भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 107 है.यह भी पढ़ें: MP: SC सख्त, पूछा- स्पीकर ने विधायकों के इस्तीफों पर क्यों नही लिया फैसला
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First published: March 19, 2020, 8:38 AM IST