आजादी के बाद से देश में अब तक 47 सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहे हैं. कुछ ने पद पर रहते हुए उदाहरण पेश किए तो कुछ ने पद से रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने अपने लिए गैर विवादित भूमिकाएं चुनीं. कुछ सीजेआई पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. कुछ ऐसे भी रहे, जो यूनिवर्सिटी में चांसलर बने.
हालांकि देश के ज्यादातर मुख्य न्यायाधीश रिटायरमेंट के बाद किसी ना किसी कमीशन के चेयरमैन जरूर बनते रहे हैं. देश के पहले मुख्य न्यायाधीश पद पर रहने के दौरान ही 1951 में हार्ट अटैक के कारण दिवंगत हो गए.
दूसरे मुख्य न्यायाधीश स्टेट काउंसिल के मेंबर बन गएइसके बाद देश के दूसरे मुख्य न्यायाधीश बने पतंजलि शास्त्री. वो चेन्नई से ताल्लुक रखते थे. करीब तीन साल तक इस पद पर रहे. वो पद से रिटायर होते कि उससे पहले ही उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रो वाइस चांसलर बना दिया गया. वो कई बोर्ड में भी शामिल रहे, लेकिन अचानक उनकी दिलचस्पी राजनीति की ओर बढ़ी और वो उस समय मद्रास संविधान सभा के सदस्य बन गए, इसे आज की भाषा में आप विधायक भी कह सकते हैं. वो इस भूमिका में 1958 से 1962 तक रहे.
नेहरू का प्रस्ताव ही ठुकरा दिया था
बिजन कुमार मुखर्जी 1954 से लेकर 1956 तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे. दरअसल प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें पहले ही इस पद का प्रस्ताव दिया था. लेकिन तब उन्होंने इसे ठुकरा दिया. उन्होंने नेहरू से कहा कि उनसे सीनियर जज सुप्रीम कोर्ट में हैं. इसलिए उन जज को ही सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया जाए. उसके बाद जब 1954 में जब उनकी बारी आई तो वो इस पद पर आए.वो रिटायरमेंट के बाद पूजा पाठ में लग गए
1959 में बिहार के बीपी सिन्हा चीफ जस्टिस बने. वह पद पर 1964 तक रहे यानि वो करीब चार साल इस पद पर रहने वाले जजों में शामिल हो गए. जैसे ही वह रिटायर हुए उन्होंने अपना जीवन आध्यात्मिकता और धार्मिकता के नाम कर दिया. वो अपना मन पूजा पाठ में लगाने लगे. बाद में उनकी आंखों की रोशनी जाती रही.. 1986 में पटना में उनका निधन हो गया.
कई सीजेआई वाइस चांसलर बने
रिटायर के बाद कई पूर्व मुख्य न्यायाधीश देश के विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर बने हैं. इसमें सबसे पहले थे पीबी गजेंद्रगडकर. उन्होंने कई किताबें लिखीं और 1966 में रिटायर होकर मुंबई यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर बने.
इसी तरह वर्ष 1993 से लेकर 1994 तक मुख्य न्यायाधीश रहे एमएन वेंकटचलैया भी रिटायर होने के बाद सत्य साईं इस्टीट्यूट ऑफ हाई लर्निंग के चांसलर बन गए. अब भी वो इसी पद पर हैं. साथ ही कई और संस्थाओं से जुड़े हुए हैं.
वर्ष 1994 से लेकर 1997 इस शीर्ष पद पर रहे एएम अहमदी रिटायर होने के बाद दो बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर बने. वो लगातार दुनियाभर में कई जगहों पर लेक्चर देने जाते रहे हैं. इसी तरह विश्वेश्वर नाथ खरे जब 2004 में रिटायर हुए तो वो झारखंड सेंट्रल यूनिवर्सटी के चांसलर बन गए.
सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने वाले कई मुख्य न्यायाधीशों ने अलग अलग कमीशन के चेयरमैन बनने का प्रस्ताव स्वीकार किया (File Photo)
वो राष्ट्रपति का चुनाव लड़े और हार गए
के सुब्बाराव वर्ष मार्च 1966 मेें देश के मुख्य न्यायाधीश बने. लेकिन करीब दस महीने बाद विपक्षी दलों ने जब उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि वो जाकिर हुसैन के खिलाफ ये चुनाव हार गए.
हिदायतुल्लाह उप राष्ट्रपति बने
1968 से लेकर 70 तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे हिदातुल्लाह पद से रिटायर होने के बाद देश के छठे उप राष्ट्रपति बने. वो एक्टिंग राष्ट्रपति भी रहे.
जस्टिस सतशिवम रिटायर होते ही राज्यपाल बन गए.
वर्ष 2013 से 2014 तक मुख्य नयायाधीश रहे जस्टिस सतशिवम ने जब सेवानिवृत होने के बाद केरल में राज्यपाल का पद स्वीकार किया तो उनकी भी बहुत आलोचना हुई. उन्हें भी नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान ही ये भूमिका दी गई थी.
राज्यसभा में जाने वाले तीसरे सुप्रीम कोर्ट जज
रंजन गोगोई यद्यपि राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए हैं लेकिन ये पहला अवसर नहीं है जबकि सुप्रीम कोर्ट के जज राज्य सभा में पहुंचे हैं. इससे पहले कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीतकर रंगनाथ मिश्रा 1998 से लेकर 2004 तक राज्य सभा सदस्य रहे. रंगनाथ का परिवार ओडिसा में कांग्रेस की राजनीति से गहरे तक जुड़ा रहा था. उनके पिता ओडिसा में कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे थे. बाद में देश के मुख्य न्यायाधीश बने दीपक मिश्रा उन्हीं के बेटे हैं. हालांकि रंगनाथ मिश्र से भी पहले कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के एक और जज बहारुल इस्लाम को राज्य सभा में भेजा था.
अलग अलग कमीशन में
देश के ज्यादातर रिटायर्ड चीफ जस्टिस ने पद से हटने के बाद किसी ना किसी तौर पर अलग अलग कमीशन के चेयरमैन का रोल स्वीकार किया. इसमें जस्टिस जेसी वर्मा से लेकर जस्टिस कमल नारायण सिंह और जस्टिस राजेंद्र मल लोढ़ा शामिल हैं. जस्टिस राजेंद्र मल लोढ़ा को रिटायर होने के बाद आईपीएल फिक्सिंग मामले में बीसीसीआई के ढांचे में आमूलचूल बदलाव के लिए संस्तुति करने वाले आयोग का चेयरमैन बनाया गया था.
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